भारत-अमेरिका टैरिफ युद्ध: प्रभाव, व्यापार और भू-राजनीति
परिचय: टैरिफ वृद्धि का घटनाक्रम
संयुक्त राज्य अमेरिका ने हाल ही में भारत से आयातित वस्तुओं पर 25% टैरिफ लागू किया, जिसे अब 50% तक बढ़ा दिया गया है। यह कदम अमेरिकी प्रशासन द्वारा भारत के रूस के साथ बढ़ते व्यापारिक और रणनीतिक संबंधों, विशेष रूप से तेल और हथियार व्यापार, के जवाब में उठाया गया है। इस नीति का उद्देश्य अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करना और अपनी विनिर्माण क्षमता को बढ़ावा देना है, लेकिन इसके भारत और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहरे प्रभाव पड़ने की संभावना है। यह ब्लॉग इस टैरिफ वृद्धि के आर्थिक, व्यापारिक और भू-राजनीतिक प्रभावों का विश्लेषण करता है, साथ ही भारत-अमेरिका और भारत-रूस संबंधों पर इसके प्रभाव को भी देखता है।
भारतीय बाजारों पर प्रभाव
भारत का अमेरिका के साथ 2024 में 131.8 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार था, जिसमें 87.4 बिलियन डॉलर का निर्यात शामिल था। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, और भारत के कुल निर्यात का लगभग 18% हिस्सा अमेरिकी बाजार में जाता है। 50% टैरिफ से भारतीय निर्यात की प्रतिस्पर्धात्मकता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। विशेष रूप से प्रभावित होने वाले क्षेत्र हैं:
- वस्त्र और परिधान: भारत ने 2024 में अमेरिका को 9.6 बिलियन डॉलर के कपड़े और वस्त्र निर्यात किए। टैरिफ वृद्धि से ये उत्पाद अमेरिकी बाजार में महंगे हो जाएंगे, जिससे मांग में कमी आ सकती है।
- रत्न और आभूषण: 12 बिलियन डॉलर के निर्यात के साथ, यह क्षेत्र पहले से ही 27% टैरिफ का सामना कर रहा है। अतिरिक्त 50% टैरिफ से मुनाफा मार्जिन और कम हो सकता है।
- फार्मास्यूटिकल्स: भारत अमेरिका को 9 बिलियन डॉलर की गैर-पेटेंट दवाएं निर्यात करता है। टैरिफ से कीमतें बढ़ेंगी, जिससे भारतीय फार्मा कंपनियों की बाजार हिस्सेदारी प्रभावित हो सकती है।
- ऑटोमोबाइल पार्ट्स: 2.2 बिलियन डॉलर के निर्यात पर टैरिफ का असर भारतीय इंजीनियरिंग क्षेत्र को प्रभावित करेगा।
विशेषज्ञों का अनुमान है कि 25% टैरिफ से भारत की जीडीपी में 0.19% की कमी आ सकती है, और 50% टैरिफ के साथ यह प्रभाव और गहरा हो सकता है, जिससे प्रति परिवार औसतन 2396 रुपये की वार्षिक हानि हो सकती है।
अमेरिकी बाजारों पर प्रभाव
अमेरिकी उपभोक्ताओं को भारतीय उत्पादों जैसे कपड़े, गहने, दवाएं और ऑटो पार्ट्स के लिए अधिक कीमत चुकानी पड़ेगी। इससे अमेरिकी बाजार में मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। इसके अलावा, भारत से आयातित कच्चे माल और घटकों पर निर्भर अमेरिकी कंपनियों को उच्च लागत का सामना करना पड़ेगा, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हो सकती है। उदाहरण के लिए, भारत में निर्मित iPhone, जो अमेरिकी निर्यात का 70% हिस्सा हैं, की कीमत 2300 डॉलर तक बढ़ सकती है।
हालांकि, अमेरिकी प्रशासन का मानना है कि यह नीति स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देगी और व्यापार घाटे को कम करेगी, जो 2024 में भारत के साथ 45.7 बिलियन डॉलर था।
लाभकारी देश
अमेरिका द्वारा भारत पर उच्च टैरिफ लगाने से अन्य देशों को लाभ हो सकता है, जिन पर कम टैरिफ लागू हैं। इनमें शामिल हैं:
- वियतनाम: 20% टैरिफ के साथ, वियतनाम के कपड़ा और इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
- बांग्लादेश: 20% टैरिफ के साथ, बांग्लादेश का कपड़ा उद्योग भारत से बाजार हिस्सेदारी छीन सकता है।
- इंडोनेशिया: 19% टैरिफ के साथ, यह देश भी निर्यात ऑर्डर में वृद्धि देख सकता है।
- पाकिस्तान: 19% टैरिफ और अमेरिका के साथ तेल व्यापार समझौते से पाकिस्तान को आर्थिक लाभ हो सकता है।
ये देश भारत की तुलना में कम लागत पर उत्पादों की आपूर्ति कर सकते हैं, जिससे उनकी बाजार हिस्सेदारी बढ़ सकती है।
भारत-अमेरिका व्यापार: निर्यात और आयात
भारत से अमेरिका को निर्यात: भारत अमेरिका को मुख्य रूप से निम्नलिखित वस्तुएं निर्यात करता है:
- रत्न और आभूषण (12 बिलियन डॉलर)
- वस्त्र और परिधान (9.6 बिलियन डॉलर)
- फार्मास्यूटिकल्स (9 बिलियन डॉलर)
- ऑटोमोबाइल पार्ट्स (2.2 बिलियन डॉलर)
- पेट्रोकेमिकल्स, मशीनरी, और इलेक्ट्रॉनिक्स
अमेरिका से भारत को आयात: भारत अमेरिका से निम्नलिखित वस्तुएं आयात करता है:
- पेट्रोलियम उत्पाद (2025 की पहली तिमाही में 3.7 बिलियन डॉलर)
- रक्षा उपकरण
- एलएनजी और एलपीजी
- कृषि उत्पाद (सोयाबीन, मक्का, डेयरी)
टैरिफ वृद्धि से भारतीय निर्यात महंगे हो जाएंगे, जबकि अमेरिकी आयात पर भारत जवाबी टैरिफ कम करने पर विचार कर रहा है।
राजनीतिक और व्यापारिक लाभ-हानि
राजनीतिक प्रभाव: टैरिफ वृद्धि ने भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव बढ़ाया है। अमेरिकी प्रशासन भारत के रूस के साथ संबंधों को लेकर नाराज है, विशेष रूप से रूस से तेल और हथियार खरीद को। यह नीति भारत को रूस के साथ अपने रणनीतिक संबंधों पर पुनर्विचार करने के लिए दबाव डाल सकती है। हालांकि, भारत ने संयम बरता है और 25 अगस्त 2025 से शुरू होने वाली व्यापार वार्ताओं के माध्यम से तनाव कम करने की कोशिश कर रहा है।
व्यापारिक हानि: भारत के लघु और मध्यम उद्यम (SME), विशेष रूप से वस्त्र, चमड़ा, और हस्तशिल्प क्षेत्र, टैरिफ वृद्धि से सबसे अधिक प्रभावित होंगे। इसके अलावा, भारतीय निर्यातकों को वैकल्पिक बाजारों जैसे यूरोपीय संघ, जापान, और आसियान देशों की तलाश करनी होगी।
लाभ: यदि भारत अमेरिका के साथ व्यापार समझौते को अंतिम रूप दे पाता है, तो यह दीर्घकालिक आर्थिक सहयोग को बढ़ावा दे सकता है। इसके अलावा, भारत द्वारा अमेरिकी तेल और रक्षा उपकरणों का आयात बढ़ाने से व्यापार घाटे को संतुलित करने में मदद मिल सकती है।
भारत-रूस संबंध: तेल और हथियार व्यापार
भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2025 तक 68.7 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है, जिसमें रूसी कच्चा तेल भारत के कुल तेल आयात का 35% हिस्सा है। रूस से सस्ता तेल भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों और टैरिफ ने इस व्यापार को खतरे में डाल दिया है।
तेल व्यापार: रूस से सस्ते तेल की आपूर्ति बंद होने पर भारत को खाड़ी देशों से महंगा तेल खरीदना पड़ सकता है, जिससे प्रति वर्ष 9-11 बिलियन डॉलर का अतिरिक्त खर्च हो सकता है। भारत ने जवाब में अमेरिकी तेल आयात को 2025 की पहली तिमाही में 3.7 बिलियन डॉलर तक बढ़ाया है, जो 2024 से 51% अधिक है।
हथियार व्यापार: भारत अपनी रक्षा जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर रहा है, लेकिन अमेरिकी दबाव के कारण अब यह अमेरिकी रक्षा उपकरणों की खरीद बढ़ा रहा है। यह बदलाव भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को प्रभावित कर सकता है।
अमेरिका के प्रस्तावित ‘रसियन सैंक्शंस एक्ट, 2025’ में रूस से तेल या पेट्रोलियम उत्पाद खरीदने वाले देशों पर 500% टैरिफ का प्रावधान है, जो भारत के लिए एक बड़ा जोखिम है।
निष्कर्ष
अमेरिका द्वारा भारत पर 25% से बढ़ाकर 50% टैरिफ लगाना एक जटिल आर्थिक और भू-राजनीतिक चुनौती है। यह भारतीय निर्यात क्षेत्रों, विशेष रूप से वस्त्र, रत्न, और फार्मास्यूटिकल्स, को प्रभावित करेगा, जबकि अमेरिकी उपभोक्ताओं को उच्च कीमतों का सामना करना पड़ेगा। वियतनाम, बांग्लादेश, और पाकिस्तान जैसे देशों को इस स्थिति का लाभ मिल सकता है। भारत-रूस संबंध, विशेष रूप से तेल और हथियार व्यापार, इस टैरिफ युद्ध के केंद्र में हैं, और भारत को अपनी ऊर्जा और रक्षा रणनीति में संतुलन बनाना होगा। भारत सरकार की संयमित प्रतिक्रिया और व्यापार वार्ताओं पर ध्यान केंद्रित करना दीर्घकालिक समाधान की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
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