
#विश्व_साइकिल_दिवस
हर किसी के बचपन का जुड़ाव साइकिल से किसी ना किसी रूप में जरूर रहा होगा बचपन के उन दिनों की याद जरूर आ जाती है जब साइकिल एक रुपए पर घंटे किराए पर मिला करती थी चला पाए या ना चला पाए वह अलग बात थी क्योंकि आसपास ऐसे दोस्त भी हुआ करते थे कि जो सिखाने के बहाने खुद मजे लूटते थे 1 घंटे के लिए मिलने वाली साइकिल में ज्यादातर समय चैन चढ़ाने और हवा भरने में ही निकल जाता था
यदि सब कुछ ठीक रहा तो किराए की साइकिल की खराब घंटी एवं कमजोर ब्रेक की समस्या हमेशा बनी रहती थी जिसके कारण किसी से टकराया ना उसका उत्तरदायित्व पीछे से गाइड कर रहे दोस्त और अपने पैरों का ज्यादा रहता था कैंची डंडा सीट वाली साइकिल सीखने की प्रक्रिया में चलाते समय सबसे ज्यादा ध्यान फ्रेंड लोगों की तरफ रहता था और सिखाने वाले हमेशा कहते थे सामने देखो यदि साइकिल की स्पीड अधिक हो गई और पीछे से गाइड करने वाले दोस्त पीछे छूट गए तो लोगों को हटाने एवं साइकिल को कंट्रोल करने का एक ही सहारा होता था साइकिल को रोकने की नाकाम कोशिश करते हुए बार बार चिल्लाना भाई साहब हट जाओ भाई साहब हट जाओ साइकिल में ब्रेक नहीं है फिर भी किसी ना किसी से टकरा जाती थी
उसके बाद शुरू होती थी जांच पड़ताल किसके लड़के हो साइकिल चलाना नहीं आता क्या देखो हमें कितनी लग गई हमारा इलाज कराओ इन सभी सवालों के बीच पीछे साइकिल सिखाने वाले दोस्त रफू चक्कर हो जाते थे मन में डर होता था कि अब शायद घर पर शिकायत ना पहुंच जाए उससे ज्यादा टेंशन किराए की साइकिल की टूट-फूट एवं किराए का एक घंटा पूरे होने का भी रहता था कि अगर 5 मिनट भी ज्यादा हो जाएंगे दूसरे घंटे के भी पैसे देने पड़ेंगे
साइकिल सीखते समय साइकिल का गिरना एक आम बात होती थी और हमेशा सिखाने वाला एक ही डायलॉग मारता था जब तक गिरोगे नहीं तब तक चलाना सीखोगे नहीं आज भी अनेक लोगों के घुटनों में साइकिल से गिरने से बने चोट के निशान बने हुए देखे जा सकते हैं जो कि उस नादान बचपन की याद के तौर पर हैं
उस समय लगभग सभी बच्चों की अपने घर वालों से एक ही आसान और मांग रहती थी कि उन्हें नई साइकिल कब मिलेगी
अब लगभग हर घरों में मोटरसाइकिल कार जरूर आ गए हो लेकिन ओ है किराए की साइकिल चलाने का मजा शायद अब कभी लौट कर ना आए🎯
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