शनिवार, 3 मई 2025

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस: एक लोकतांत्रिक स्तंभ की सुरक्षा की पुकार


हर वर्ष 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। यह दिवस न केवल पत्रकारिता के मूल्यों को सम्मानित करने का अवसर है, बल्कि यह लोकतंत्र की आधारशिला – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता – की रक्षा के संकल्प का दिन भी है। वर्ष 1993 में यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा घोषित यह दिवस आज के समय में पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया है, जब दुनिया भर में स्वतंत्र प्रेस पर बढ़ते खतरे सामने आ रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य: एक असहज स्थिति

हाल के वर्षों में, कई देशों में प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के प्रयास तेज हुए हैं। रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स (RSF) की 2024 की प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के आधे से अधिक देशों में पत्रकारों को स्वतंत्र रूप से कार्य करने में बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। कहीं सेंसरशिप, कहीं राजनीतिक दबाव तो कहीं हिंसा और धमकियाँ – ये सब आज के पत्रकारों की वास्तविकता बन चुकी है।

विशेष रूप से संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों जैसे म्यांमार, अफगानिस्तान, ईरान और रूस में पत्रकारों को प्रताड़ित किया जा रहा है। 2023 में ही करीब 50 से अधिक पत्रकारों की जान चली गई, जिनमें से कई अपने काम के दौरान मारे गए। यह एक खतरनाक संकेत है जो दर्शाता है कि पत्रकारिता अब केवल कलम और शब्दों की ताकत नहीं, बल्कि साहस और बलिदान का पेशा बनती जा रही है।

भारतीय परिप्रेक्ष्य: चुनौतियाँ और अवसर


भारत में पत्रकारिता का इतिहास समृद्ध रहा है — आज़ादी की लड़ाई से लेकर लोकतंत्र की स्थापना तक, प्रेस ने अपनी ज़िम्मेदारी को निभाया है। लेकिन हाल के वर्षों में भारत की प्रेस स्वतंत्रता पर भी सवाल उठे हैं। भारत, जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, 2024 के प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में नीचे की ओर खिसकता गया है।

पत्रकारों को कई बार मानहानि, देशद्रोह जैसे आरोपों में घसीटा गया है, जिससे स्वतंत्र रिपोर्टिंग पर असर पड़ा है। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स और सोशल मीडिया की तेजी से बढ़ती भूमिका ने जहाँ सूचनाओं के नए द्वार खोले हैं, वहीं फेक न्यूज़ और ट्रोलिंग का खतरा भी बढ़ा है।

हालांकि भारत में अनेक सकारात्मक पहलें भी सामने आई हैं – जैसे कई राज्यों ने पत्रकार सुरक्षा कानून लाने की दिशा में कदम उठाए हैं। प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और पत्रकार संगठनों का प्रयास भी सराहनीय है, लेकिन इसे और प्रभावी बनाने की आवश्यकता है।

भविष्य की राह: सुझाव और अपेक्षाएँ

पत्रकार सुरक्षा कानून की आवश्यकता: केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर ऐसा कानून बनाना चाहिए जो पत्रकारों की जान-माल की सुरक्षा, आपातकालीन सहायता, और न्यायिक संरक्षण सुनिश्चित करे।

परिवार कल्याण योजनाएँ: पत्रकारिता में जान गंवाने या घायल होने वाले पत्रकारों के परिवारों के लिए बीमा, शिक्षा, और आर्थिक सहायता जैसे योजनाओं की आवश्यकता है।

स्वतंत्र एवं निष्पक्ष मीडिया संस्थानों को सहयोग: सरकारों को पत्रकारों के कार्य में हस्तक्षेप करने की बजाय, उन्हें संरक्षित करने वाली नीतियाँ बनानी चाहिए।

डिजिटल प्रेस की रक्षा: डिजिटल पत्रकारों और स्वतंत्र ब्लॉगरों को भी वही अधिकार मिलने चाहिए जो पारंपरिक मीडिया को मिलते हैं।

यूनेस्को जैसे वैश्विक मंच पर भारत की भागीदारी: भारत को वैश्विक मंचों पर प्रेस स्वतंत्रता की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।

निष्कर्ष


प्रेस की स्वतंत्रता केवल पत्रकारों का विषय नहीं, बल्कि हर नागरिक का अधिकार है। यह स्वतंत्रता हमें सच जानने, सवाल पूछने, और सत्ता को जवाबदेह बनाने की शक्ति देती है। विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम न केवल इस स्वतंत्रता की रक्षा करेंगे, बल्कि उसे और मजबूत बनाएंगे। पत्रकारों की सुरक्षा और उनके परिवारों के कल्याण को प्राथमिकता देना सरकारों और समाज दोनों की ज़िम्मेदारी है।

जब तक एक भी पत्रकार बिना भय के सवाल पूछ सकता है, तब तक लोकतंत्र जीवित रहेगा।

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपका धन्यवाद आपने हमारे ब्लॉग पर टिप्पणी की

विश्व की कुछ घटनाएं जो कि कुछ लोगों को पहले से ही पता चल जाती हैं जिनमे रूस में आया भूकंप भी

पूर्वानुमान, सपने और आध्यात्मिक दृष्टिकोण: एक सिमुलेटेड विश्व का रहस्य ...