शनिवार, 9 मई 2020

एक बगल में 🌝चांद होगा 🛠️एक बगल में 🍪रोटियां @🇮🇳पलायन एक आशा या निराशा

 कोरोनावायरस से फैली महामारी के कारण एक और दर्दनाक दुखद मानवीय संवेदना को झकझोर देने वाली घटना महाराष्ट्र के औरंगाबाद में घटित हुई जिसमें प्रवासी मजदूर लगभग 6 सप्ताह से लॉक डाउन हटने का इंतजार करने के बाद अपने घर पहुंचने की आशा लिए  भूखे प्यासे सूखी रोटियां के साथ  राज्य एवं केंद्र सरकार के बीच में फिटबॉल बन चुके यह प्रवासी मजदूर सरकारों की लोगों को  उनके घरों की ओर भेजने की घोषणा होने के बाद आशा लेकर विभिन्न स्टेशनों पर पहुंचना शुरू हुए क्योंकि  महामारी बंदी के कारण विभिन्न यातायात के साधन पूर्ण रूप से प्रतिबंधित थे एवं जितनी भी बचत पहुंची थी वह खत्म हो चुकी थी फैक्ट्री के मालिक से लेकर मकान मालिक अपने अपने तरीके से प्रवासी मजदूरों पर पलायन के लिए दबाव बना रहे थे इस कारण विभिन्न फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूर अपने  परिवार के साथ रेल की पटरी के सहारे बड़े स्टेशनों के लिए निकल पड़े उन्हें आशा थी के वहां से उनके कई सैकड़ों किलोमीटर दूर गांव के लिए ट्रेनों में सरकार उन्हें भेजने की व्यवस्था करगी उन्हें क्या पता था की रेल लाइन पर चलते चलते बुद्ध पूर्णिमा पूनम की यह रात उनके लिए अंतिम रात होगी और  मौत मालगाड़ी का रूप बनकर अपने आगोश में ले लेगी

क्योंकि पूरे देश भर के रेलवे द्वारा ऑपरेशन अति शीघ्र चलाया जा रहा है जिसमें सभी गाड़ियां अपनी मानक समय स्पीड यानी के फुल स्पीड में चलाए जा सही हैं इसके लिए विभिन्न रेलवे में पहले से ही दिशा निर्देश दे दिए गए लोको स्पेक्टर इसकी निगरानी कर रहे हैं इसका प्रमुख उद्देश्य सही समय पर राहत सामग्री एवं लोगों को अपने गंतव्य तक पहुंचाने की व्यवस्था से है जब गाड़ियां अपनी फुल स्पीड में होती हैं तो हर प्रकार के ब्रेक लगाने के बाद भी गाड़ी को लगभग आधा किलोमीटर से भी अधिक दूरी की आवश्यकता होती है जिससे वह पूर्ण रूप से रोकी जा सके रेलगाड़ी  का कोई भी ड्राइवर एवं कर्मचारी कभी नहीं चाहता कि उससे किसी भी प्रकार की घटना घटित हो जिससे उसके दामन पर दाग लगे उसके साथ उसके परिवार एवं समाज के लोगों में उसकी छवि धूमिल हो हर तरीके से बचाने के बाद भी यह दुर्घटना टालने में ट्रेन के ड्राइवर एवं सहायक नाकाम हुए  विभिन्न न्यूज़ चैनलों द्वारा एवं सूत्रों द्वारा बताया गया कि सभी मजदूर रेल की पटरी पर सो रहे थे अगर इस प्रकार का साक्ष रेलवे द्वारा संज्ञान लिया जाता है तो उसमें मुआवजे में इन मजदूरों के परिवारों को दिक्कत आ सकती है रेल नियम अनुसार रेलवे ट्रैक पर किसी प्रकार की गतिविधि रेल कानून तोड़ने के रूप में मानी जाती है जिसके लिए रेल लॉ एक्ट मैं विभिन्न प्रकार की कानूनी प्रावधान हैं  घटनास्थल पर  पड़ी सूखी रोटियां पलायन की मजबूरी को दिखा रहा है

कि लोग 2 जून की रोटी के लिए अपने घर परिवार से हजारों किलोमीटर दूर संघर्ष करते-करते यूं ही मर जाते हैं वही कुछ लोग हजारों करोड़ों रुपए का घोटाला करके जिंदगी मजे से काटते हैं   मानवता को शर्मसार कर देने वाली 2 जून रोटी के लिए पलायन उसके बाद  संघर्ष करते-करते अपनी जिंदगी को यूं ही लूटा देना जिंदगी कितनी सस्ती होती है ऐसी घटनाओं से  मानवता के असंतुलित बेरहम चेहरे नजर आते है लगभग दर्जन लोग मृत्यु एवं गंभीर रूप से घायल हो चुके   विभिन्न न्यूज़ चैनल एवं समाचार पत्रों  अपने तरीके से अपने आकाओं के अनुसार कवरेज को अंजाम दिया जा रहा है कुछ न्यूज़ चैनल इस घटनाओं को दिखाने की जगह अपना पुराना एजेंडा भारत-पाकिस्तान को दिखाने में कि भारत देगा पाकिस्तान के मौसम की जानकारी मैं लगे हुए हैं प्रत्येक घटना के राज्य सरकार   केंद्र सरकार एवं विभिन्न संस्थान इन मजदूरों के लिए मुआवजा की घोषणा करेंगे लेकिन अभी तक के इतिहास से यह कह पाना मुश्किल है कि इन मजदूरों के परिवार तक संवेदना प्रोत्साहन राशि पहुंच पाएगी या नहीं कहीं ना कहीं देशभर में फंसे हुए लोगों  मजदूरों तीर्थयात्रियों छात्रों के लिए रणनीति बनाने में सरकार से चूक हुई है लॉक  डाउन के शुरुआती चरण में जब विभिन्न देशों में भारतीय लोगों को देश में लाने की बात चली तो विभिन्न प्रकार की एयरलाइंस कंपनी अपने अपने तरीके से घोषणा करने लगे क्या हुआ थे कि विदेशों से लोगों को अपने एयरलाइंस कंपनी द्वारा शीघ्र से शीघ्र भारत में ला सकती हैं लेकिन देश के ही एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक गरीब मजदूरों को पहुंचाने के लिए किसी भी प्रकार की कंपनियों द्वारा घोषणा नहीं की गई विभिन्न प्रकार की ऑफर उपलब्ध कराने वाली एयरलाइंस कंपनियां जो कि मात्र हजार ₹700 में देश के एक कोने से दूसरे कोने की यात्रा करा दिया करती  थी अब जब पूरे विश्व में तेल सस्ता है विश्व भर की सभी एयरलाइंस जमीन पर खड़ी हैं और अपने हो रहे घाटे को दिन प्रतिदिन सरकार को बतला कर अपने कर्ज माफी की याचना करने के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त किए हुए फिर इस भीषण प्राकृतिक महामारी में उन सभी कंपनियों द्वारा अपने आप को अलग करना क्यों  उचित समझा वहीं रेल द्वारा भी घोषणा करने के बावजूद लोगों से टिकट के पैसे वसूलने की घटना कहीं ना कहीं देश को दो हिस्सों में बांटने की कोशिश की गई एक अमीरों वाला देश एक गरीब मजदूरों वाला देश उद्योगपतियों का कर्जा माफ या बट्टे खाते में डालने जैसी घटनाएं कहीं ना कहीं उस किसान और मजदूर की जेहन में तीर की तरह चुभ रही है जिसके मात्र पांच ₹10000 के कर्जे के लिए उसकी जमीन और ट्रैक्टर नीलाम किया जाता था विभिन्न प्रकार के औद्योगिक संस्थानों के मालिकों द्वारा अपने पावर का फायदा उठाकर महामारी से बचाव के लिए पलायन कर रहे मजदूरों को रोकने के लिए कदम उठाने के लिए लेबर कानून को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है कुछ दिन पूर्व एक फैक्ट्री के गैस प्लांट अकेली हो ने के कारण हजारों लोग बीमार पड़ गए लगभग एक दर्जन लोगों की मृत्यु हो गई ऐसी घटनाओं में 4 दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात 2 दिन मीडिया चिल्लाएगी तीसरे दिन से घटना के साथ सभी मांगो एवं जांचों का वजूद  खत्म हो जाता है बीमा कंपनी भी अपने हाथ खड़े कर देती हैं जांच कमेटी भी अपनी रिपोर्ट को फैक्ट्री मालिकों के हिसाब से बना देते हैं देश का क्या होगा यह तो पता नहीं लेकिन शोषण हमेशा गरीब का होता ही रहेगा

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