रविवार, 23 जून 2019

अखिलेश से मोहभंग होने का कारण भाई भतीजावाद

पिछले 2 वर्ष से जिस प्रकार से उत्तर प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी एवं बहुजन समाज पार्टी एक होकर गोरखपुर और फूलपुर की लोकसभा सीटों को जीता उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन करके भाजपा को चुनौती देने का साहस किया था लेकिन वह गठबंधन किसी कारणवश सफल नहीं हो पाया लोकसभा चुनाव 2019 के बाद बाद देखा जा रहा था की समाजवादी पार्टी के साथ बहुजन समाज पार्टी भविष्य में गठबंधन को जारी रखेंगे या गठबंधन को विराम लगेगा गठबंधन पर किसी प्रकार की टिप्पणी ना करने का समाजवादी पार्टी मुखिया अखिलेश यादव ने निर्णय लिया था पहले ही बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती द्वारा घोषणा की गई कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के रास्ते अलग होंगे भविष्य में बहुजन समाज पार्टी अपने दम पर चुनाव लड़ेगी यह घोषणा अखिलेश यादव के लिए बड़ी ही दुखद थी क्योंकि उन्होंने अपने परिवार एवं पार्टी को ताक पर रखकर यह गठबंधन कर के धुर विरोधी पार्टी होने का दाग धोया था  क्योंकि यह निर्णय दिमाग से नहीं दिल  से लिया गया था इसलिए  पूरी तरह से बीएसपी की शर्तों पर गठबंधन किया  गया जिसका खामियाजा उन्हें लोकसभा चुनाव में अपनी परंपरागत सीटों के नुकसान से उठाना पड़ा वहीं दूसरी ओर गठबंधन का फायदा पूरी तरह से बहुजन समाज पार्टी को मिला जो 2014 के लोकसभा चुनाव में जीरो पर थी वर्तमान में 10 पर पहुंच गई मायावती द्वारा लिया गया अलग होने का निर्णय राजनीतिक पंडितों के लिए आश्चर्य का विषय नहीं है क्योंकि पूर्व में ऐसी चौकानेवाले निर्णय बहन जी ले चुकी है वही बीएसपी की रणनीति पूरी तरह से अखिलेश की राजनीति के इर्द-गिर्द घूमने लगी थी क्योंकि अखिलेश का लचीला राजनीति करने का तरीका कहीं दलितों को अपनी ओर ना खींच ले क्योंकि बहुजन समाज पार्टी की मुखिया की राजनीतिक विरासत को संभालने वाला वर्तमान में कोई भी  मजबूत राजनीतिक व्यक्ति नहीं दिखाई दे रहा था वहीं दूसरी ओर अखिलेश यादव एक कुशल राजनेता और प्रशासक के रूप में अपनी क्षमताओं को प्रदर्शित कर चुके हैं इसी को देखते हुए अपने परंपरागत वोट बैंक को बचाकर बहुजन समाज पार्टी अपने ही परिवार से राजनैतिक दावेदार को आगे करना चाहती थी इसीलिए यह गठबंधन को यहीं पर विराम देने का कार्य बहुजन समाज पार्टी की मुखिया द्वारा करके अपने ही परिवार के अपने भाई आनंद कुमार को बहुजन समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं अपने भतीजे आकाश को राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर बनाकर अपनी भविष्य की विरासत सौंपने का मार्ग बना लिया है यह निर्णय बहुजन समाज पार्टी की आम मिसीनरी कार्यकर्ता किस तरीके से लेते हैं यह तो भविष्य बताएगा लेकिन इन सभी मायावती जी के निर्णय से समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को झटका लगा है जो बहुजन समाज पार्टी की विरासत को संभालने का सपना देखने लगे थे बहुत हद तक अपनी रणनीति में सफल भी हुए थे मायावती जी के चिर परिचित अंदाज को कुछ  हद तक रोकने में सफल भी हुए थे लेकिन एक निर्णय बदलने में नाकाम हुए वह लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को गठबंधन में शामिल करने का जिसका खामियाजा कुछ हद तक गठबंधन को हुआ भी बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो की कार्य करने कि शैली जिससे लोगों को हमेशा आशंका बनी रहती है की बहन जी कब किस से नाराज हो जाए यह खुद बहन जी को भी पता नहीं होता क्योंकि बहुजन समाज पार्टी की शुरुआत से लेकर अब तक अनेक पार्टी लीडरों को मायावती जी के गुस्से का शिकार होना पड़ा है बड़े से बड़े पार्टी के लीडर कब अर्श से फर्श पर आ जाए यह उन्हें खुद भी पता नहीं होता है लेकिन वर्तमान में बात भाई भतीजा बात की है इन पर मायावती जी की कृपा दृष्टि कब तक बनी रहती है यह तो भविष्य आने वाला भविष्य ही बताएगा

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