ईरान-इसराइल युद्ध: अमेरिका की निर्णायक कार्रवाई
तेहरान/वाशिंगटन, 22 जून 2025
युद्ध का नया मोड़
मध्य पूर्व में ईरान और इसराइल के बीच चल रहे युद्ध ने एक नया और खतरनाक मोड़ ले लिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसराइल के समर्थन में सैन्य कार्रवाई का रास्ता चुना। अमेरिकी वायुसेना ने ईरान की तीन प्रमुख परमाणु साइट्स—फोर्डो, नतांज, और इस्फहान—पर घातक हमले किए, जिससे क्षेत्रीय और वैश्विक समीकरण पूरी तरह बदल गए। इन हमलों की पुष्टि राष्ट्रपति ट्रंप ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर की।
युद्ध की पृष्ठभूमि और तनाव का चरम
ईरान और इसराइल के बीच युद्ध पिछले कई दिनों से चल रहा था, जिसमें दोनों देश एक-दूसरे पर मिसाइल और ड्रोन हमले कर रहे थे। ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई ने इसराइल के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाते हुए अपने परमाणु कार्यक्रम को तेज करने और घातक हथियारों के इस्तेमाल की धमकी दी थी। इस बीच, रूस और कुछ अन्य देशों से समर्थन मिलने की खबरों ने पश्चिमी देशों की चिंता बढ़ा दी थी।
इसराइल ने ईरान के परमाणु और मिसाइल ठिकानों पर लगातार हमले किए, लेकिन फोर्डो परमाणु साइट को भेदना मुश्किल था। यहीं पर अमेरिका की सैन्य ताकत ने निर्णायक भूमिका निभाई।
अमेरिका की सैन्य कार्रवाई: B-2 बॉम्बर्स का दम
अमेरिका ने युद्ध में अपनी सैन्य ताकत का इस्तेमाल करने से पहले ईरान को कई बार चेतावनी दी थी। ट्रंप ने दो महीने पहले ईरान को परमाणु कार्यक्रम रोकने के लिए 60 दिन का अल्टीमेटम दिया था, जिसे तेहरान ने ठुकरा दिया। इसके बाद अमेरिका ने रणनीतिक तैयारी शुरू की। गुआम से चार B-2 स्टील्थ बॉम्बर और आठ टैंकर विमान
डिएगो गार्सिया के लिए रवाना हुए। इन विमानों ने GBU-57 बंकर बस्टर बमों का इस्तेमाल कर फोर्डो साइट को निशाना बनाया, जो पहाड़ के नीचे होने के बावजूद तबाह हो गई। नतांज और इस्फहान साइट्स पर भी भारी बमबारी की गई, जिससे ईरान के परमाणु कार्यक्रम को गहरा झटका लगा। ट्रंप ने X पर दावा किया, “हमने फोर्डो पर बमों का पूरा पेलोड गिराया। सभी वि�मान सुरक्षित हैं।”ऐतिहासिक समानता: विश्व युद्धों का फॉर्मूला
यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने किसी युद्ध के अंतिम चरण में शामिल होकर माहौल को अपने पक्ष में किया है। प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) में अमेरिका 1917 में शामिल हुआ और मित्र राष्ट्रों की जीत में निर्णायक भूमिका निभाई। इसी तरह, द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) में 1941 में पर्ल हार्बर हमले के बाद युद्ध में कूदा और जापान पर परमाणु बम गिराकर युद्ध का अंत किया। इसराइल-ईरान युद्ध में भी अमेरिका ने उसी रणनीति को दोहराया।
ईरान की स्थिति और वैश्विक प्रतिक्रिया
ईरान के लिए यह हमला बड़ा झटका है। फोर्डो, नतांज, और इस्फहान साइट्स के नष्ट होने से उसका परमाणु कार्यक्रम वर्षों पीछे चला गया है। खामेनेई के बंकर में छिपे होने की खबरें हैं, और तेहरान में इंटरनेट ब्लैकआउट के कारण सूचनाएं सीमित हैं। रूस और चीन ने अमेरिकी हमले की निंदा की, जबकि इसराइल और पश्चिमी देशों ने समर्थन किया।भारत ने सतर्क रुख अपनाया और भारतीय नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी की। तेल की कीमतों में 2% की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
आगे क्या?
अमेरिकी हमले के बाद युद्ध के तत्काल खत्म होने की संभावना कम है, लेकिन ईरान की कमजोर स्थिति इसे बातचीत की मेज पर ला सकती है। ट्रंप ने संकेत दिए हैं कि वह शांति चाहते हैं, लेकिन इसके लिए ईरान को बिना शर्त सरेंडर करना होगा। खामेनेई की जिद और क्षेत्रीय तनाव युद्ध को और लंबा खींच सकते हैं।इस युद्ध ने साबित किया कि अमेरिका की सैन्य शक्ति वैश्विक समीकरण बदलने की ताकत रखती है। अब दुनिया की नजरें इस पर हैं कि यह युद्ध शांति की ओर बढ़ेगा या और विनाशकारी होगा।
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